Kabir (also Kabira) was a mystic poet and saint of India, whose writings have greatly influenced the Bhakti movement. The name Kabir comes from Arabic Al-Kabir which means 'The Great' - the 37th Name of God in the Qur'an. He was as is widely acknowledged born in Year 1398 A.D.(71 years before Guru Nanak). Kabirpanthis (followers of Kabir) say that he lived upto the age of 120 years and give date of his death as 1518, but relying on the research of Hazari Prased Trivedi, a British Scholar Charlotte Vaudenville is inclined to lend credence to these dates and has prooven that 1448 is probably the correct date of Saint Kabir's demise. Apart from having an important influence on Sikhism, Kabir's legacy is today carried forward by the Kabir Panth ("Path of Kabir"), a religious community that recognizes him as its founder and is one of the Sant Mat sects. Its members, known as Kabir panthis, are estimated to be around 9,600,000. They are spread over north and central India, as well as dispersed with the Indian diaspora across the world, up from 843,171 in the 1901 census. |
Can't view hindi text click here to download font |
HINDI : काशी के इस अकà¥à¤–ड़, निडर à¤à¤µà¤‚ संत कवि का जनà¥à¤® लहरतारा के पास सनॠ१२९ॠमें जà¥à¤¯à¥‡à¤·à¥à¤ पूरà¥à¤£à¤¿à¤®à¤¾ को हà¥à¤†à¥¤ जà¥à¤²à¤¾à¤¹à¤¾ परिवार में पालन पोषण हà¥à¤†, संत रामानंद के शिषà¥à¤¯ बने और अलख जगाने लगे। कबीर सधà¥à¤•à¥à¤•ड़ी à¤à¤¾à¤·à¤¾ में किसी à¤à¥€ समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ और रà¥à¤¢à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की परवाह किये बिना खरी बात कहते थे। हिंदू-मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ सà¤à¥€ समाज में वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ रà¥à¤¢à¤¿à¤µà¤¾à¤¦ तथा कटà¥à¤Ÿà¤ªà¤°à¤‚थ का खà¥à¤²à¤•र विरोध किया। कबीर की वाणी उनके मà¥à¤–र उपदेश उनकी साखी, रमैनी, बीजक, बावन-अकà¥à¤·à¤°à¥€, उलटबासी में देखें जा सकते हैं। गà¥à¤°à¥ गà¥à¤°à¤‚थ साहब में उनके २०० पद और २५० साखियां हैं। काशी में पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है कि जो यहाठमरता है उसे मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है। रà¥à¤¢à¤¿ के विरोधी कबीर को यह कैसे मानà¥à¤¯ होता। काशी छोड़ मगहर चले गये और सनॠ१४१० में वहीं देह तà¥à¤¯à¤¾à¤— किया। मगहर में कबीर की समाधि है जिसे हिनà¥à¤¦à¥‚ मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ दोनों पूजते हैं। हिंदी साहितà¥à¤¯ में कबीर का वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ अनà¥à¤ªà¤® है। गोसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ तà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤¾à¤¸ को छोड़ कर इतना महिमामणà¥à¤¡à¤¿à¤¤ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ कबीर के सिवा अनà¥à¤¯ किसी का नहीं है। कबीर की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ के संबंध में अनेक किंवदनà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ हैं। कà¥à¤› लोगों के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° वे जगदà¥à¤—à¥à¤°à¥ रामाननà¥à¤¦ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ के आशीरà¥à¤µà¤¾à¤¦ से काशी की à¤à¤• विधवा बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥€ के गरà¥à¤ से उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ थे। बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥€ उस नवजात शिशॠको लहरतारा ताल के पास फेंक आयी। उसे नीरॠनाम का जà¥à¤²à¤¾à¤¹à¤¾ अपने घर ले आया। उसी ने उसका पालन-पोषण किया। बाद में यही बालक कबीर कहलाया। कतिपय कबीर पनà¥à¤¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है कि कबीर की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ काशी में लहरतारा तालाब में उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ कमल के मनोहर पà¥à¤·à¥à¤ª के ऊपर बालक के रà¥à¤ª में हà¥à¤ˆà¥¤ à¤à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ गà¥à¤°à¤‚थ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° किसी योगी के औरस तथा पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤à¤¿ नाम देवाङà¥à¤—ना के गरà¥à¤ से à¤à¤•à¥à¤¤à¤°à¤¾à¤œ पà¥à¤°à¤¹à¤²à¤¾à¤¦ ही संवतॠ१४५५ जà¥à¤¯à¥‡à¤·à¥à¤ शà¥à¤•à¥à¤² १५ को कबीर के रà¥à¤ª में पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤ थे। कà¥à¤› लोगों का कहना है कि वे जनà¥à¤® से मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ थे और यà¥à¤µà¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ में सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ रामाननà¥à¤¦ के पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ से उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ हिनà¥à¤¦à¥‚ धरà¥à¤® की बातें मालूम हà¥à¤ˆà¤‚। à¤à¤• दिन, à¤à¤• पहर रहते ही कबीर पञà¥à¤šà¤—ंगा घाट की सीढियो पर गिर पड़े। रामाननà¥à¤¦ जी गंगासà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करने के लिये सीढियाठउतर रहे थे कि तà¤à¥€ उनका पैर कबीर के शरीर पर पड़ गया। उनके मà¥à¤– से ततà¥à¤•ाल 'राम-राम' शबà¥à¤¦ निकल पड़ा। उसी राम को कबीर ने दीकà¥à¤·à¤¾ मनà¥à¤¤à¥à¤° मान लिया और रामाननà¥à¤¦ जी को अपना गूरॠसà¥à¤µà¥€à¤•ार कर लिया। कबीर के ही शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में - 'हम कासी में पà¥à¤°à¤•ट à¤à¤¯à¥‡ हैं, रामाननà¥à¤¦ चेताये'। अनà¥à¤¯ जनशà¥à¤°à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है कि कबीर ने हिंदू-मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ का à¤à¥‡à¤¦ मिटा कर हिंदू-à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ तथा मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ फकीरों का सतà¥à¤¸à¤‚ग किया और दोनों की अचà¥à¤›à¥€ बातों को हृदयंगम कर लिया। जनशà¥à¤°à¥à¤¤à¤¿ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤• पà¥à¤¤à¥à¤° कमाल तथा पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ कमाली थी। इतने लोगों की परवरिश करने के लिये उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपने करघे पर काफी काम करना पड़ता था। साधॠसंतों का तो घर में जमावड़ा रहता ही था। कबीर पà¥à¥‡-लिखे नहीं थे - 'मसि कागद छूवो नहीं, कलम गही नहीं हाथ।' उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सà¥à¤µà¤¯à¤‚ गà¥à¤°à¤‚थ नहीं लिखे, मà¥à¤à¤¹ से à¤à¤¾à¤–े और उनके शिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ ने उसे लिख लिया। आप के समसà¥à¤¤ विचारों में रामनाम की महिमा पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤§à¥à¤µà¤¨à¤¿à¤¤ होती है। वे à¤à¤• ही ईशà¥à¤µà¤° को मानते थे और करà¥à¤®à¤•ाणà¥à¤¡ के घोर विरोधी थे। अवतार, मूरà¥à¤•ितà¥à¤¤, रोज़ा, ईद, मसजिद, मंदिर आदि को वे नहीं मानते थे। कबीर के नाम से मिले गà¥à¤°à¤‚थों की संखà¥à¤¯à¤¾ à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨-à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ लेखों के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨-à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ है। à¤à¤š.à¤à¤š. विलà¥à¤¸à¤¨ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° कबीर के नाम पर आठगà¥à¤°à¤‚थ हैं। विशप जी.à¤à¤š. वेसà¥à¤Ÿà¤•ॉट ने कबीर के ८४ गà¥à¤°à¤‚थों की सूची पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ की तो रामदास गौड़ ने 'हिंदà¥à¤¤à¥à¤µ' में à¥à¥§ पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•ें गिनायी हैं। कबीर की वाणी का संगà¥à¤°à¤¹ 'बीजक' के नाम से पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है। इसके तीन à¤à¤¾à¤— हैं - रमैनी, सबद और साखी यह पंजाबी, राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€, खड़ी बोली, अवधी, पूरबी, बà¥à¤°à¤œà¤à¤¾à¤·à¤¾ आदि कई à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं की खिचड़ी है। कबीर परमातà¥à¤®à¤¾ को मितà¥à¤°, माता, पिता और पति के रà¥à¤ª में देखते हैं। यही तो मनà¥à¤·à¥à¤¯ के सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤• निकट रहते हैं। वे à¤à¥€ कहते हैं - 'हरिमोर पिउ, मैं राम की बहà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾' तो कà¤à¥€ कहते हैं, 'हरि जननी मैं बालक तोरा'। उस समय हिंदू जनता पर मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® आतंक का कहर छाया हà¥à¤† था। कबीर ने अपने पंथ को इस ढंग से सà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤œà¤¿à¤¤ किया जिससे मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® मत की ओर à¤à¥à¤•ी हà¥à¤ˆ जनता सहज ही इनकी अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€ हो गयी। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपनी à¤à¤¾à¤·à¤¾ सरल और सà¥à¤¬à¥‹à¤§ रखी ताकि वह आम आदमी तक पहà¥à¤à¤š सके। इससे दोनों समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯à¥‹à¤‚ के परसà¥à¤ªà¤° मिलन में सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ हà¥à¤ˆà¥¤ इनके पंथ मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨-संसà¥à¤•ृति और गोà¤à¤•à¥à¤·à¤£ के विरोधी थे। कबीर को शांतिमय जीवन पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ था और वे अहिंसा, सतà¥à¤¯, सदाचार आदि गà¥à¤£à¥‹à¤‚ के पà¥à¤°à¤¶à¤‚सक थे। अपनी सरलता, साधॠसà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ तथा संत पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤à¤¿ के कारण आज विदेशों में à¤à¥€ उनका समादर हो रहा है। वृदà¥à¤§à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¤à¤¾ में यश और कीरà¥à¤•ितà¥à¤¤ की मार ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बहà¥à¤¤ कषà¥à¤Ÿ दिया। उसी हालत में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बनारस छोड़ा और आतà¥à¤®à¤¨à¤¿à¤°à¥€à¤•à¥à¤·à¤£ तथा आतà¥à¤®à¤ªà¤°à¥€à¤•à¥à¤·à¤£ करने के लिये देश के विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ à¤à¤¾à¤—ों की यातà¥à¤°à¤¾à¤à¤ कीं। इसी कà¥à¤°à¤‚म में वे कालिं जिले के पिथौराबाद शहर में पहà¥à¤à¤šà¥‡à¥¤ वहाठरामकृषà¥à¤£ का छोटा सा मनà¥à¤¦à¤¿à¤° था। वहाठके संत à¤à¤—वानॠगोसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ के जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¥ साधक थे किंतॠउनके तरà¥à¤•ों का अà¤à¥€ तक पूरी तरह समाधान नहीं हà¥à¤† था। संत कबीर से उनका विचार-विनिमय हà¥à¤†à¥¤ कबीर की à¤à¤• साखी के उन के मन पर गहरा असर किया- 'बन ते à¤à¤¾à¤—ा बिहरे पड़ा, करहा अपनी बान। करहा बेदन कासों कहे, को करहा को जान।।' वन से à¤à¤¾à¤— कर बहेलिये के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ खोये हà¥à¤ गडà¥à¤¢à¥‡ में गिरा हà¥à¤† हाथी अपनी वà¥à¤¯à¤¥à¤¾ किस से कहे? सारांश यह कि धरà¥à¤® की जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¤¾ में पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ हो कर à¤à¤—वान गोसाई अपना घर छोड़ कर बाहर तो निकल आये और हरिवà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ के गडà¥à¤¢à¥‡ में गिर कर अकेले निरà¥à¤µà¤¾à¤¸à¤¿à¤¤ हो कर असंवादà¥à¤¯ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में पड़ चà¥à¤•े हैं। मूरà¥à¤¤à¤¿ पूजा को लकà¥à¤·à¥à¤¯ करते हà¥à¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤• साखी हाजिर कर दी - पाहन पूजे हरि मिलैं, तो मैं पूजौं पहार। वा ते ता चाकी à¤à¤²à¥€, पीसी खाय संसार।। ११९ वरà¥à¤· की अवसà¥à¤¥à¤¾ में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मगहर में देह तà¥à¤¯à¤¾à¤— किया। . |