It is believed that Maharishi Patanjali was the avatar of Adi Shesha - the Infinite Cosmic Serpent upon whom Lord Vishnu rests. He is considered to be the compiler of the Yoga Sutras, along with being the author of a commentary on Panini's Ashtadhyayi, known as Mahabhasya. He is also supposed to be the writer of a work on the ancient Indian medicine system, Ayurveda. Maharshi Patanjali is known as the Father of Yoga. He is the founder of Ashtanga Yoga and compiled the Yoga Sutras around 3rd or 4th century BC. Maharshi Patanjali is believed that Patanjali was an incarnation of Adishesha, a mythological God. Pata means 'fallen' and Anjali means 'hands folded in prayer'. Maharshi Patanjali has written treatises on Ayurveda and grammar. He was a follower of the Sankhya philosophy. |
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पतञà¥à¤œà¤²à¤¿ काशी में ईसा पूरà¥à¤µ दूसरी शताबà¥à¤¦à¥€ में विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ थे। इनका जनà¥à¤® गोनारदà¥à¤¯ (गोनिया) में हà¥à¤† था पर ये काशी में "नागकूप' पर बस गये थे। ये वà¥à¤¯à¤¾à¤•रणाचारà¥à¤¯ पाणिनी के शिषà¥à¤¯ थे। काशीनाथ आज à¤à¥€ शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£ कृषà¥à¤£ ५, नागपंचमी को "छोटे गà¥à¤°à¥ का, बड़े गà¥à¤°à¥ का नाग लो à¤à¤¾à¤ˆ नाग लो' कहकर नाग के चितà¥à¤° बाà¤à¤Ÿà¤¤à¥‡ हैं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि पतञà¥à¤œà¤²à¤¿ à¥à¤•ो शेषनाग का अवतार माना जाता है। पतञà¥à¤œà¤²à¤¿ महानॠचकितà¥à¤¸à¤• थे और इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ ही 'चरक संहिता' का पà¥à¤°à¤£à¥‡à¤¤à¤¾ माना जाता है। पतञà¥à¤œà¤²à¤¿ का महान अवदान है 'योगसूतà¥à¤°'। पतञà¥à¤œà¤²à¤¿ रसायन विदà¥à¤¯à¤¾ के विशिषà¥à¤Ÿ आचारà¥à¤¯ थे - अà¤à¥à¤°à¤• विंदास अनेक धातà¥à¤¯à¥‹à¤— और लौहशासà¥à¤° इनकी देन है। पतञà¥à¤œà¤²à¤¿ संà¤à¤µà¤¤: पà¥à¤·à¥à¤¯à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° शà¥à¤‚ग (१९५-१४२ ई.पू.) के शासनकाल में थे। राजा à¤à¥‹à¤œ ने इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ तन के साथ मन का à¤à¥€ चिकितà¥à¤¸à¤• कहा है। ई.पू. दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ शताबà¥à¤¦à¥€ में 'महाà¤à¤¾à¤·à¥à¤¯' के रचयिता पतञà¥à¤œà¤²à¤¿ काशी-मणà¥à¤¡à¤² के ही निवासी थे। मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¤à¥à¤° की परंपरा में वे अंतिम मà¥à¤¨à¤¿ थे। पाणिनी के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥ पतञà¥à¤œà¤²à¤¿ सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के अधिकारी पà¥à¤°à¥à¤· हैं। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पाणिना वà¥à¤¯à¤¾à¤•रण के महाà¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ की रचना कर सà¥à¤¥à¤¿à¤°à¤¤à¤¾ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ की। वे अलौकिक पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾ के धनी थे। वà¥à¤¯à¤¾à¤•रण के अतिरिकà¥à¤¤ अनà¥à¤¯ शासà¥à¤°à¥‹à¤‚ पर à¤à¥€ इनका समान रà¥à¤ª से अधिकार था। वà¥à¤¯à¤¾à¤•रण शासà¥à¤° में उनकी बात को अंतिम पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ समà¤à¤¾ जाता है। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने समय के जनजीवन का परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ निरीकà¥à¤·à¤£ किया था। अत: महाà¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ वà¥à¤¯à¤¾à¤•रण का गà¥à¤°à¤‚थ होने के साथ-साथ ततà¥à¤•ालीन समाज का विशà¥à¤µà¤•ोश à¤à¥€ है। यह तो सà¤à¥€ जानते हैं कि पतञà¥à¤œà¤²à¤¿ शेषनाग के अवतार थे। दà¥à¤°à¤µà¤¿à¥œ देश के सà¥à¤•वि रामचनà¥à¤¦à¥à¤° दीकà¥à¤·à¤¿à¤¤ ने अपने 'पतञà¥à¤œà¤²à¤¿ चरित' नामक कावà¥à¤¯ गà¥à¤°à¤‚थ में उनके चरितà¥à¤° के संबंध में कà¥à¤› नये तथà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की संà¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं को वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ किया है। उनके अनà¥à¤¸à¤¾à¤° शंकराचारà¥à¤¯ के दादागà¥à¤°à¥ आचारà¥à¤¯ गौड़पाद पतञà¥à¤œà¤²à¤¿ के शिषà¥à¤¯ थे किंतॠतथà¥à¤¯à¥‹à¤‚ से यह बात पà¥à¤·à¥à¤Ÿ नहीं होती है। पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤£à¥à¤¯ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ ने अपने गà¥à¤°à¤‚थ 'शंकर दिगà¥à¤µà¤¿à¤œà¤¯' में शंकराचारà¥à¤¯ में गà¥à¤°à¥ गोविंद पादाचारà¥à¤¯ का रà¥à¤ªà¤¾à¤‚तर माना है। इस पà¥à¤°à¤•ार उनका संबंध अदà¥à¤µà¥‡à¥ˆà¤¤ वेदांत के साथ जà¥à¥œ गया। पतञà¥à¤œà¤²à¤¿ के समय निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤£ के संबंध में पà¥à¤·à¥à¤¯à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° कणà¥à¤µ वंश के संसà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤• बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ राजा के अशà¥à¤µà¤®à¥‡à¤§ यजà¥à¤žà¥‹à¤‚ की घटना को लिया जा सकता है। यह घटना ई.पू. दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ शताबà¥à¤¦à¥€ की है। इसके अनसार महाà¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ की रचना काल ई.पू. दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ शताबà¥à¤¦à¥€ का मधà¥à¤¯à¤•ाल अथवा १५० ई. पूरà¥à¤µ माना जा सकता है। पतञà¥à¤œà¤²à¤¿ की à¤à¤•मातà¥à¤° रचना महाà¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ है जो उनकी कीरà¥à¤¤à¤¿ को अमर बनाने के लिये परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है। दरà¥à¤¶à¤¨ शासà¥à¤° में शंकराचारà¥à¤¯ को जो सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ 'शारीरिक à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯' के कारण पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है, वही सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पतञà¥à¤œà¤²à¤¿ को महाà¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ के कारण वà¥à¤¯à¤¾à¤•रण शासà¥à¤° में पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है। पतञà¥à¤œà¤²à¤¿ ने इस गà¥à¤°à¤‚थ की रचना कर पाणिनी के वà¥à¤¯à¤¾à¤•रण की पà¥à¤°à¤¾à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤•ता पर अंतिम मà¥à¤¹à¤° लगा दी है. |