ADI SHANKARA WAS AN INDIAN PHILOSOPHER WHO CONSOLIDATED THE DOCTRINE OF ADVAITA VEDANTA, A SUB-SCHOOL OF VEDANTA. HIS TEACHINGS ARE BASED ON THE UNITY OF THE SOUL AND BRAHMAN, IN OTHER WORDS NON-DUAL BRAHMAN, IN WHICH BRAHMAN IS VIEWED AS WITHOUT ATTRIBUTES. HE HAILED FROM KALADY OF PRESENT DAY KERALA. SHANKARA TRAVELLED ACROSS INDIA AND OTHER PARTS OF SOUTH ASIA TO PROPAGATE HIS PHILOSOPHY THROUGH DISCOURSES AND DEBATES WITH OTHER THINKERS. HE FOUNDED FOUR MATHAS ("MONASTERIES"), WHICH HELPED IN THE HISTORICAL DEVELOPMENT, REVIVAL AND SPREAD OF ADVAITA VEDANTA. ADI SHANKARA IS BELIEVED TO BE THE ORGANIZER OF THE DASHANAMI MONASTIC ORDER AND THE FOUNDER OF THE SHANMATA TRADITION OF WORSHIP. HIS WORKS IN SANSKRIT, ALL OF WHICH STILL EXIST TODAY, CONCERN THEMSELVES WITH ESTABLISHING THE DOCTRINE OF ADVAITA (NONDUALISM). HE ALSO ESTABLISHED THE IMPORTANCE OF MONASTIC LIFE AS SANCTIONED IN THE UPANISHADS AND BRAHMA SUTRA, IN A TIME WHEN THE MIMAMSA SCHOOL ESTABLISHED STRICT RITUALISM AND RIDICULED MONASTICISM. SHANKARA REPRESENTED HIS WORKS AS ELABORATING ON IDEAS FOUND IN THE UPANISHADS, AND HE WROTE COPIOUS COMMENTARIES ON THE VEDIC CANON (BRAHMA SUTRA, PRINCIPAL UPANISHADS AND BHAGAVADGITA) IN SUPPORT OF HIS THESIS. THE MAIN OPPONENT IN HIS WORK IS THE MIMAMSA SCHOOL OF THOUGHT, THOUGH HE ALSO OFFERS SOME ARGUMENTS AGAINST THE VIEWS OF SOME OTHER SCHOOLS LIKE SAMKHYA AND CERTAIN SCHOOLS OF BUDDHISM THAT HE WAS PARTLY FAMILIAR WITH. |
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अदà¥à¤µà¥‡à¥ˆà¤¤ दरà¥à¤¶à¤¨ के महानॠआचारà¥à¤¯ शंकर का पà¥à¤°à¤¾à¤¦à¥à¤°à¥à¤à¤¾à¤µ à¥à¥®à¥¦ ईसà¥à¤µà¥€ में हà¥à¤†à¥¤ केरल पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में अलवाई नदी के तट पर बसे कालाड़ी गà¥à¤°à¤¾à¤® में महानॠà¤à¤•à¥à¤¤ शिव गà¥à¤°à¥ के घर माता विसिषà¥à¤Ÿà¤¾ ने वैशाख शà¥à¤•à¥à¤² पंचमी को इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ जनà¥à¤® दिया। शंकर की कृपा से जनà¥à¤®à¥‡à¤‚ बालक का नाम शंकर पड़ा। आठवें वरà¥à¤· में शंकर ने सनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ ले लिया। गà¥à¤°à¥ की खोज में ओंकारेशà¥à¤µà¤° पहà¥à¤à¤šà¥‡ जहाठइनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ गोविनà¥à¤¦à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥à¤¯ मिले। तीन वरà¥à¤· अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करके बारह वरà¥à¤· की आयॠमें ये काशी पहà¥à¤à¤šà¥‡à¥¤ मणिकरà¥à¤£à¤¿à¤•ा पर यह बाल-आचारà¥à¤¯ वृदà¥à¤§ शिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को 'मौन वà¥à¤¯à¤¾à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¨' देता था। काशी में गंगा सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करके लौटते समय à¤à¤• चांडाल को मारà¥à¤— से हटो कहा तब चांडाल ने इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ 'अदà¥à¤µà¥‡à¥ˆà¤¤' का वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• जà¥à¤žà¤¾à¤¨ दिया और काशी में चांडाल रà¥à¤ªà¤§à¤¾à¤°à¥€ शंकर से पूरà¥à¤£ शिकà¥à¤·à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर शंकर ने १४ वरà¥à¤· की उमà¥à¤° में बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¸à¥‚तà¥à¤°, गीता, उपनिषदॠपर à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ लिखे। सोलह वरà¥à¤· की उमà¥à¤° में वेदवà¥à¤¯à¤¾à¤¸ से à¤à¥‡à¤‚ट हà¥à¤ˆà¥¤ पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— में कà¥à¤®à¤¾à¤°à¤¿à¤² ठसे मिले, महिषà¥à¤®à¤¤à¤¿ में मंडन मिशà¥à¤° से शासà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ किया। इनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने केदार धाम में ३२ वरà¥à¤· की आयॠमें शिवसायà¥à¤œà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ किया। à¤à¤—वानॠशंकर के संबंध में जो à¤à¥€ पाठà¥à¤¯ सामगà¥à¤°à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है तथा उनके जीवन संबंध में जो à¤à¥€ घटनाà¤à¤ मिलती हैं उनसे जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है कि वे à¤à¤• अलौकिक वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ थे। उनके वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ में पà¥à¤°à¤•ाणà¥à¤¡ पाणà¥à¤¡à¤¿à¤¤à¥à¤¯, गंà¤à¥€à¤° विचार शैली, अगाध à¤à¤—वदà¥à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ आदि का दà¥à¤°à¥à¤²à¤ समावेश दिखायी देता है। उनकी वाणी में मानों सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ का वास था। अपनी बतà¥à¤¤à¥€à¤¸ वरà¥à¤· की अलà¥à¤ªà¤¾à¤¯à¥ में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अनेक बृहदॠगà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ की रचना की, पूरा à¤à¤¾à¤°à¤¤ à¤à¥à¤°à¤®à¤£ कर अपने विरोधियों को शासà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ में पराजित किया, à¤à¤¾à¤°à¤¤ के चारों कोनों में मठसà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ किये तथा डूबते हà¥à¤ सनातन धरà¥à¤® की रकà¥à¤·à¤¾ की। धरà¥à¤® संसà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ के उनके इस कारà¥à¤¯ को देख कर यह विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ दृढ़ हो उठता है कि वे साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥ शंकर के अवतार थे - "शंकरो शंकर: साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥"। उनके ही समय में à¤à¤¾à¤°à¤¤ में वेदानà¥à¤¤ दरà¥à¤¶à¤¨ अदà¥à¤µà¥‡à¥ˆà¤¤à¤µà¤¾à¤¦ का सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° हà¥à¤†, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अदà¥à¤µà¥‡à¥ˆà¤¤à¤µà¤¾à¤¦ का पà¥à¤°à¤µà¤°à¥à¤¤à¥à¤¤à¤• माना जात है। बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¸à¥‚तà¥à¤° पर जितने à¤à¥€ à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ मिलते हैं उनमें सबसे पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ शंकर à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ ही है। उनके जनà¥à¤® तिथि के संबंध में मतà¤à¥‡à¤¦ है लेकिन अधिकांश लोगों का यही मानना है कि वे à¥à¥®à¥® ई. में आविरà¥à¤à¥‚त हà¥à¤ और ३२ वरà¥à¤· की आयॠमें तिरोहित हà¥à¤à¥¤ उनका जनà¥à¤® केरल पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ के पूरà¥à¤£à¤¾à¤¨à¤¦à¥€ के तटवरà¥à¤¤à¥€ कलादी नामक गà¥à¤°à¤¾à¤® में वैशाख शà¥à¤•à¥à¤² ५ को हà¥à¤† था। उनके पिता का नाम शिवगà¥à¤°à¥ तथा माता का नाम सà¥à¤à¤¦à¥à¤°à¤¾ या विशिषà¥à¤Ÿà¤¾ था। उनके बचपन से ही मालूम होने लगा कि किसी महानॠविà¤à¥‚ति का अवतार हà¥à¤† है। पाà¤à¤šà¤µà¥‡ वरà¥à¤· में यजà¥à¤žà¥‹à¤ªà¤µà¥€à¤¤ करा कर इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ गà¥à¤°à¥ के घर पढ़ने के लिठà¤à¥‡à¤œà¤¾ गया और सात वरà¥à¤· की आयॠमें ही आप वेद, वेदानà¥à¤¤ और वेदाङà¥à¤—ों का पूरà¥à¤£ अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ कर वापस आ गये। वेदाधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ के उपरानà¥à¤¤ आपने संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ गà¥à¤°à¤¹à¤£ करना चाहा किनà¥à¤¤à¥ माता ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ आजà¥à¤žà¤¾ नहीं दी। à¤à¤• दिन वे माठके साथ नदी पर सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करने गये, वहाठमगर ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पकड़ लिया। माठहाहाकार मचाने लगी। शंकर ने माठसे कहा तà¥à¤® यदि मà¥à¤à¥‡ संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ लेने की अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ दो तो मगर मà¥à¤à¥‡ छोड़े देगा। माठने आजà¥à¤žà¤¾ दे दी। जाते समय माठसे कहते गये कि तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ मृतà¥à¤¯à¥ के समय मैं घर पर उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ रहूà¤à¤—ा। घर से चलकर आप नरà¥à¤®à¤¦à¤¾ तट पर आये, वहाठगोविनà¥à¤¦-à¤à¤—वतà¥à¤ªà¤¾à¤¦ से दीकà¥à¤·à¤¾ गà¥à¤°à¤¹à¤£ की। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने गà¥à¤°à¥ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बताये गये मारà¥à¤— से साधना शà¥à¤°à¥ कर दी अलà¥à¤ªà¤•ाल में ही योग सिदà¥à¤§ महातà¥à¤®à¤¾ हो गये। गà¥à¤°à¥ की आजà¥à¤žà¤¾ से वे काशी आये। यहाठउनके अनेक शिषà¥à¤¯ बन गये, उनके पहले शिषà¥à¤¯ बने सननà¥à¤¦à¤¨ जो कालानà¥à¤¤à¤° में पदà¥à¤®à¤ªà¤¾à¤¦à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥à¤¯ के नाम से पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ हà¥à¤à¥¤ वे शिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को पढ़ाने के साथ-साथ गà¥à¤°à¤‚थ à¤à¥€ लिखते जाते थे। कहते हैं कि à¤à¤• दिन à¤à¤—वान विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ ने चाणà¥à¤¡à¤¾à¤² के रà¥à¤ª में उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ दरà¥à¤¶à¤¨ दिया और बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¸à¥‚तà¥à¤° पर à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ लिखने और धरà¥à¤® का पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° करने का आदेश दिया। जब à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ लिख चà¥à¤•े तो à¤à¤• दिन à¤à¤• बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ ने गंगा तट पर उनसे à¤à¤• सूतà¥à¤° का अरà¥à¤¥ पूछा। उस सूतà¥à¤° पर उनका उस बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ के साथ आठदिन तक शासà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ हà¥à¤†à¥¤ बाद में मालूम हà¥à¤† कि बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ और कोई नहीं साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥ à¤à¤—वानॠवेद वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ थे। वहाठके कà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° होते हà¥à¤ वे बदरिकाशà¥à¤°à¤® पहà¥à¤à¤šà¥‡à¥¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने सà¤à¥€ गà¥à¤°à¤‚थ पà¥à¤°à¤¾à¤¯: काशी या बदरिकाशà¥à¤°à¤® में लिखे थे, वहाठसे वे पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— गये और कà¥à¤®à¤¾à¤°à¤¿à¤² ठसे à¤à¥‡à¤‚ट की। कà¥à¤®à¤¾à¤°à¤¿à¤² ठके कथनानà¥à¤¸à¤¾à¤° वे माहिषà¥à¤®à¤¤à¤¿ नगरी में मणà¥à¤¡à¤¨ मिशà¥à¤° के पास शासà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ के लिठआये। उस शासà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ में मधà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¥ थीं मणà¥à¤¡à¤¨ मिशà¥à¤° की विदà¥à¤·à¥€ पतà¥à¤¨à¥€ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¥¤ इसमें मणà¥à¤¡à¤¨ मिशà¥à¤° की पराजय हà¥à¤ˆ, और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने शंकराचारà¥à¤¯ का शिषà¥à¤¯à¤¤à¥à¤µ गà¥à¤°à¤¹à¤£ किया। इस पà¥à¤°à¤•ार à¤à¤¾à¤°à¤¤-à¤à¥à¤°à¤®à¤£ के साथ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ को शासà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ में पराजित कर वे बदरिकाशà¥à¤°à¤® लौट आये वहाठजà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤®à¤ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की और तोटकाचारà¥à¤¯ को उसका माठीधीश बनाया। अंतत: वे केदार कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में आये और वहीं इनका जीवन सूरà¥à¤¯ असà¥à¤¤ हो गया। उनके लिखे गà¥à¤°à¤‚थों की संखà¥à¤¯à¤¾ २६२ बतायी जाती है, लेकिन यह कहना कठिन है कि ये सारे गà¥à¤°à¤‚थ उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ के लिख हैं। उनके पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ गà¥à¤°à¤‚थ इस पà¥à¤°à¤•ार हैं - बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¸à¥‚तà¥à¤° à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯, उपनिषदॠà¤à¤¾à¤·à¥à¤¯, गीता à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯, विषà¥à¤£à¥ सहसà¥à¤°à¤¨à¤¾à¤® à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯, सनतà¥à¤¸à¥à¤œà¤¾à¤¤à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯, हसà¥à¤¤à¤¾à¤®à¤²à¤• à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ आदि। |